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थोड़ी सी मैं भी रह गयी थी उस मोड़ पर ….

Hum bhi kuch kahen....
Hum bhi kuch kahen....
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ऱफ्ता-ऱफ्ता
कुछ छूटता जा रहा है
कुछ यादें धुंधली पड़ रही हैं
नए-नए रिश्तों के बीच
मुरझा रहे हैं कुछ पुराने रिश्ते
जिंदगी के सफ़र में
आगे बढ़ते-बढ़ते
नए रास्तों पर चलते-चलते
पीछे रह गए कुछ मोड़
कुछ पल ठहरे थे थकन मिटाने को
नई स्फूर्ति लेने को हम जहाँ
उन ठाँव को, उन मोड़ को
सिरे से तो न भुलाया जा सकेगा
आखिर थोड़ी ही सही पर
कुछ तो रह गयी थी “मैं” वहाँ ।।
प्रवीन मलिक

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