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हम भी कन्याएं हैं हमें भी तो कोई पूज लो …..

Hum bhi kuch kahen....
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नवरात्री का समय है चारो तरफ भक्तिमय वातावरण है ! मंदिरों में भजन कीर्तन हो रहे हैं ! लोग अपने घरों में कीर्तन करा रहे हैं ! ऐसे ही पिछले साल भी था .. पिछले साल की एक घटना याद आ रही है तो सुनिए ..
शालिनी अरे प्रवीन जी कैसे हो ? मैंने उसको जवाब दिया की हम ठीक हैं आप बताओ कहाँ सुबह सुबह दौड़ भाग कर रही हैं ! शालिनी जी ने जवाब दिया की आज अस्ठ्मी है और माता की कढाई की है बस कन्याएं खोज रही हूँ मिल ही नहीं रही हैं … सबके घर जा के आ गयी हूँ सब कहीं कहीं भोग लगाने गयी हैं जब भी इनकी जरुरत होती है मिलती ही नहीं हैं !
मैंने उसको शांत करते हुए कहा .. कन्याएं  तो बहुत हैं कहो तो मैं बुला दूँ ? शालिनी जी के चेहरे पर रौनक आ गयी बोली हांजी आप बुलवा दो न जल्दी से .. कन्या पूजन और भाग से निमत जाऊं तो फिर ऑफिस भी जाना है ! मैंने कहा ठीक है आप घर जाइए मैं लेकर आती हूँ …
मैं कुछ लडकियां लेकर शालिनी जी के घर पहुँच गयी और डोर- बेल बजा दी .. शालिनी जी ने दरवाजा खोला और कहा आइये ले आयीं आप कन्याएं ? मैंने अपने पीछे इशारा किया की हाँ देखिये कन्याएं आ गयी हैं ! शालिनी ने मेरे पीछे देखा और देखकर मुंह बनाते हुए बोली प्रवीन जी ये क्या है ?
मैंने पुछा क्यूँ क्या हो गया ? शालिनी जी बोली देखिये आप किनको ले आई हैं .. ना तो ये नहाई हुयी हैं ना ही इन्होने स्वच्छ कपडे पहने हैं ! इतनी मलिन लग रहीं हैं मानो कितने दिनों से स्नान भी नहीं की हों कैसे मैं इनकी पूजा करुँगी और फिर इनके चरण भी धोने पड़ेंगे मुझसे नहीं होगा ये सब …
मैं सकपकाते हुए बोली शालिनी जी क्या हो गया ? कैसी बात कर रहे हो आप ? ये झुग्गी झोपरी में रहने वाली लडकियां भी कन्याएं ही तो हैं और आप को कन्याएं चाहिए थी पूजा करने को तो मैं ले आई देखिये इनके चेहरों को भूखी भी हैं और प्यासी भी और जो कुछ आप दक्षिणा इन्हें डोज उनकी जरुरत भी है इनको … आप हिच्किये मत और निर्मल मन से इनका स्वागत कीजिये इनको खाना वाना खिलाइए भोग लगाइए देखिये आपको कितनी शान्ति मिलेगी …
लेकिन शालिनी जी ने तो जैसे कसम खा ली हो .. अन्दर तक नहीं आने दिया ! मैंने कहा ठीक है शालिनी जी कोई बात नहीं आप इंतज़ार कीजिये जब कॉलोनी की अपनी पास पड़ोस वाली लड़कियां मिल जाए तो आप भोग लगा लीजियेगा … मैं उन लड़कियों को लेकर घर की तरफ आ गयी ! वो लडकियां निराश थी की कुछ अच्छा खाने को मिल जाता और शायद भेंट में कुछ ऐसा भी जिससे उनको कुछ लाभ मिल जाए (आजकल कन्याओं को भेंट में किताबे टिफ़िन बॉक्स , पेंसिल बॉक्स देने का रिवाज है ) …
मैंने उनको कहा की तुम लोग निराश मत हो आज तुमको खाना भी मिलेगा और भेंट भी .. तभी उनमे से एक लड़की बोलती है की नहीं हमें अब कोई नहीं बुलाएगा क्यूंकि ना तो हमारे पास अछे कपडे हैं पहनने को और न ही हम अछे घरो से हैं तो कौन हमारी पूजा करेगा ?
उनकी बाते सुनकर मैंने कहा की होगी पूजा भी होगी और खाना भी मिलेगा … मैं उनको अपने घर लेकर आ गयी ! पतिदेव मुझे देखकर मुस्करा दिए और बोले क्या हुआ ऐसे क्यूँ आ रही हो मानो कोई बड़ी जंग हार गयी हो ! मैंने उनको पूरी बात बताई वो मुस्कुराये और बोले कोई बात नहीं निराश क्यूँ होती हो .. अब जब तुम इनको ले ही आई हो तो अब इनको खाना वाना खिला दो भेंट दे दो ! मैंने कहा लेकिन हम तो कढाई नौवीं की करते हैं न … पतिदेव बोले अस्ठ्मी करो या नौवीं आज मौका है घर आई नो  दुर्गा को खाना खिलाने का पूजा करने का सोच लो …
मैंने झट से कहा ठीक है चलिए शुरू हो जाइये कल किसने देखा आज ही सही .. और हमने उनको बिठाया की आप लोग थोडा वेट करो हम तब तक भोग बना ले फिर पूजा वगरह करेंगे ! मेरे पतिदेव , मेरी सहेली जो निचे ही रहती है और मैंने मिलकर फटाफट खाना तैयार कर दिया (ज्यादा कुछ न बनाते हुए आलू की रसेदार सब्जी , पूरी , हलवा और फल ) भोग लगाया उन कन्याओं को खाना खिलाया और भेंट स्वरूप उनको पेंसिल बॉक्स और ड्राइंग की नोट बुक दी ! वो सारी  लडकियां खुश थी बहुत खुश .. सब चली गयी अपने अपने घर ख़ुशी में झूमते हुए  …..
लेकिन मेरा ह्रदय एक अलग ही ख़ुशी से आलोकित था …
(हर लड़की माँ दुर्गा का रूप होती है सिर्फ अमीरों की लडकियां ही कन्या पूजन की अधिकारी नहीं )
करके देखिये कुछ उनके लिए भी अच्छा लगेगा … खाए पिए को खिलाओगे तो क्या खिलाओगे किसी भूखे को खिलाओ जरूरतमंद को दो वाही सबसे बड़ी पूजा और अर्चना है !

नवरात्री का समय है चारो तरफ भक्तिमय वातावरण है ! मंदिरों में भजन कीर्तन हो रहे हैं ! लोग अपने घरों में कीर्तन करा रहे हैं ! ऐसे ही पिछले साल भी था .. पिछले साल की एक घटना याद आ रही है तो सुनिए ..

शालिनी जी : अरे प्रवीन जी कैसे हो ? मैंने उसको जवाब दिया की हम ठीक हैं आप बताओ कहाँ सुबह-सुबह दौड़ भाग कर रही हैं ! शालिनी जी ने जवाब दिया की आज अस्ठ्मी है और माता की कढाई की है बस कन्याएं खोज रही हूँ मिल ही नहीं रही हैं … सबके घर जा के आ गयी हूँ सब कहीं कहीं भोग लगाने गयी हैं जब भी इनकी जरुरत होती है मिलती ही नहीं हैं !

मैंने उसको शांत करते हुए कहा .. कन्याएं  तो बहुत हैं कहो तो मैं बुला दूँ ? शालिनी जी के चेहरे पर रौनक आ गयी बोली हांजी आप बुलवा दो न जल्दी से .. कन्या पूजन और भोग  से फ्री  जाऊं तो फिर ऑफिस भी जाना है ! मैंने कहा ठीक है आप घर जाइए मैं लेकर आती हूँ …

मैं कुछ लडकियां लेकर शालिनी जी के घर पहुँच गयी और डोर- बेल बजा दी .. शालिनी जी ने दरवाजा खोला और कहा आइये ले आयीं आप कन्याएं ? मैंने अपने पीछे इशारा किया की हाँ देखिये कन्याएं आ गयी हैं ! शालिनी ने मेरे पीछे देखा और देखकर मुंह बनाते हुए बोली प्रवीन जी ये क्या है ?

मैंने पुछा क्यूँ क्या हो गया ? शालिनी जी बोली देखिये आप किनको ले आई हैं .. ना तो ये नहाई हुयी हैं ना ही इन्होने स्वच्छ कपडे पहने हैं ! इतनी मलिन लग रहीं हैं मानो कितने दिनों से स्नान भी नहीं की हों कैसे मैं इनकी पूजा करुँगी और फिर इनके चरण भी धोने पड़ेंगे मुझसे नहीं होगा ये सब …

मैं सकपकाते हुए बोली शालिनी जी क्या हो गया ? कैसी बात कर रहे हो आप ? ये झुग्गी झोपरी में रहने वाली लडकियां भी कन्याएं ही तो हैं और आप को कन्याएं चाहिए थी पूजा करने को तो मैं ले आई देखिये इनके चेहरों को भूखी भी हैं और प्यासी भी और जो कुछ आप दक्षिणा इन्हें दोगी  उनकी जरुरत भी है इनको … आप हिचकिचाइए  मत और निर्मल मन से इनका स्वागत कीजिये इनको खाना वाना खिलाइए भोग लगाइए देखिये आपको कितनी शान्ति मिलेगी …

लेकिन शालिनी जी ने तो जैसे कसम खा ली हो .. अन्दर तक नहीं आने दिया ! मैंने कहा ठीक है शालिनी जी कोई बात नहीं आप इंतज़ार कीजिये जब कॉलोनी की अपनी पास पड़ोस वाली लड़कियां मिल जाए तो आप भोग लगा लीजियेगा … मैं उन लड़कियों को लेकर घर की तरफ आ गयी ! वो लडकियां निराश थी की कुछ अच्छा खाने को मिल जाता और शायद भेंट में कुछ ऐसा भी जिससे उनको कुछ लाभ मिल जाए (आजकल कन्याओं को भेंट में किताबे टिफ़िन बॉक्स , पेंसिल बॉक्स देने का रिवाज है ) …

मैंने उनको कहा की तुम लोग निराश मत हो आज तुमको खाना भी मिलेगा और भेंट भी .. तभी उनमे से एक लड़की बोलती है की नहीं हमें अब कोई नहीं बुलाएगा क्यूंकि ना तो हमारे पास अछे कपडे हैं पहनने को और न ही हम अछे घरो से हैं तो कौन हमारी पूजा करेगा ?

उनकी बाते सुनकर मैंने कहा की होगी पूजा भी होगी और खाना भी मिलेगा … मैं उनको अपने घर लेकर आ गयी ! पतिदेव मुझे देखकर मुस्करा दिए और बोले क्या हुआ ऐसे क्यूँ आ रही हो मानो कोई बड़ी जंग हार गयी हो ! मैंने उनको पूरी बात बताई वो मुस्कुराये और बोले कोई बात नहीं निराश क्यूँ होती हो .. अब जब तुम इनको ले ही आई हो तो अब इनको खाना वाना खिला दो भेंट दे दो ! मैंने कहा लेकिन हम तो कढाई नौवीं की करते हैं न … पतिदेव बोले अस्ठ्मी करो या नौवीं आज मौका है घर आई नो  दुर्गा को खाना खिलाने का पूजा करने का सोच लो …

मैंने झट से कहा ठीक है चलिए शुरू हो जाइये कल किसने देखा आज ही सही .. और हमने उनको बिठाया की आप लोग थोडा वेट करो हम तब तक भोग बना ले फिर पूजा वगरह करेंगे ! मेरे पतिदेव , मेरी सहेली जो निचे ही रहती है और मैंने मिलकर फटाफट खाना तैयार कर दिया (ज्यादा कुछ न बनाते हुए आलू की रसेदार सब्जी , पूरी , हलवा और फल ) भोग लगाया उन कन्याओं को खाना खिलाया और भेंट स्वरूप उनको पेंसिल बॉक्स और ड्राइंग की नोट बुक दी ! वो सारी  लडकियां खुश थी बहुत खुश .. सब चली गयी अपने अपने घर ख़ुशी में झूमते हुए  …..

kanya poojan

लेकिन मेरा ह्रदय एक अलग ही ख़ुशी से आलोकित था …

(हर लड़की माँ दुर्गा का रूप होती है सिर्फ अमीरों की लडकियां ही कन्या पूजन की अधिकारी नहीं )

करके देखिये कुछ उनके लिए भी अच्छा लगेगा … खाए पिए को खिलाओगे तो क्या खिलाओगे किसी भूखे को खिलाओ जरूरतमंद को दो वही सबसे बड़ी पूजा और अर्चना है !

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