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किसी व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमताओं से अधिक उसके निर्णय और कर्म उसके व्यक्तित्व के सारत्व के परिचायक हैं ! ये कर्म और निर्णय मानव की सोच का प्रतिफल होते हैं !
” अपने विचारों के प्रति सचेत हों ” ….
मानव की सोच मानव को उसके भाग्य का आधार बना देती है ! यह कहती है :–
अपने विचारों के प्रति सचेत हों , वे ही शब्द बन जाते हैं !
अपने शब्दों के प्रति सचेत हों , वे ही आपके कर्म बन जाते हैं !
अपने कर्मों के प्रति सचेत हों , वे ही आपकी आदतें बन जाती हैं !
अपने आदतों के प्रति सचेत हो , वे ही आपका चरित्र बन जाती हैं !
अपने चरित्र के प्रति सचेत हों , यह आपका भाग्य बन जाता है !
विचार या मत और व्यक्तित्व अपने आप में ऐसी विशेषताएं नहीं हैं जो समय के साथ अवरुद्ध हो जाती हैं ! परन्तु वे तो गतिशील , विकाशशील और परिवर्तन शील होती हैं ! अक्सर समय या प्रयोजन ही तय करता है की कब आपको अपने विचार बदलने या उनका विकास करने की आवश्यकता है !
जब आप बोलते हैं, चलते हैं, देखते हैं तो आपके चेहरे की बनावट शरीर के संकेतों या बॉडी लैंग्वेज से आपके सारे व्यक्तित्व का … उसी प्रकार की झलक हमारे मुखमंडल पर छा जाती है। …. अगर हमारे विचारों में स्वार्थ छिपा हो तो वह भाव सामने वाला व्यक्ति में भी प्रतिक्रिया के रुप में वैसे ही भाव पैदा करता है ।
हमारा हर छोटा-बड़ा आचरण हमारे मन की स्थितियों का बयान करता है। हमारा व्यवहार ही हमारे व्यक्तित्व का आईना होता है….
व्यवहार में व्यक्तित्व की झलक झलकती है, हमारी छवि प्रतिबिंबित होती है. व्यवहार में हमारी सोच, हमारे निजी विचार, विश्वास एवं भावों का मर्म छिपा रहता है. व्यवहार से इन … झलक मात्र है. हम जैसे होते हैं वैसा ही हम व्यवहार करते हैं……
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