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होली का त्यौहार है जो की रंग बिरंगा है , जहाँ बरसाने की होली लठमार है वहीँ पर हरियाणा की होली को आप हंटर मार कह सकते हैं ! हरियाणा में ये हंटर मार होली कैसे खेले जाती है आइये हम आपको बताते हैं :-
जैसे ही फागुन का महिना आता है इस त्यौहार की शुरुवात हो जाती है ! जिस दिन होली को जलाते हैं उस दिन को होली और जिस दिन रंग और पानी से खेलते हैं उस दिन को फाग कहते हैं ! अब आप कहेंगे की ये तो दो दिन की ही होली हुयी फिर जैसे ही फागुन लगता है इसकी शुरुवात कैसे होती है ? .. अरे सुनिए पहले बीस दिन तो नयी बहूएँ या पुराणी बहूएँ कोई भी हों बस बहूएँ अपने देवर जेठ आदि पर पानी डालती हैं और देवर जेठ पलटवार नहीं कर सकते हैं ! सिर्फ बहूएँ ही उनको भिगोती हैं जहाँ कहीं भी मिल जाये चुपके से पानी डाल देती हैं ! ये सिलसिला लगभग बीस दिन तक चलता है ! बीस दिन तक देवर जेठ ऐसे डरे डरे घूमते हैं की पता नहीं कब वो लपेटे में आ जाएँ लेकिन इसका कोई बुरा नहीं मानता है क्यूंकि कहते है न कि “ बुरा ना मानो होली है “ !
लडकियां और बहूएँ इन बीस दिनों के दौरान ही गोबर की ढाल बुल्कडे बनाती हैं और इतने बनाती हैं की एक नहीं कई कई मालाएं बनाती हैं और फिर जब शाम को होली का दहन होता है गाँव के चौराहे या तालाब के पास ऐसी जगह चुनी जाती है जहाँ पर सब आराम से पहुँच जाये और जगह खुली हो ! ये होली का डांडा बीस दिन पहले ही उस जगह पर गाड़ दिया जाता है , अब आप कहेंगे की ये डांडा क्या होता है .. तो सुनिए ये डांडा एक सुखा भारी सा लक्कड़ होता है जिसको जमीन में गाड़ दिया जाता है और निश्चित किया जाता है की यहाँ इस जगह पर होली का दहन होगा ! तो होली वाले दिन सब बहूएँ और लडकियां सज-संवर कर होली के ढाल बुलकडे (जो की गोबर से बनाये जाते हैं ) लेकर वहां होली के डंडे पर जाती हैं उसकी पूजा करती हैं और उस पर वो ढाल बुलकडे डाल देती हैं फिर और भी लकडिया आदि डाली जाती हैं लेकिन ढाल बुलकडे इतने ज्यादा होते हैं की और लकड़ियों की जरुरत नहीं पड़ती ! तो ये हो गया होली दहन …
अब आते हैं अगले दिन जब फाग खेलने का असली दिन होता है ! इस दिन पानी डालने की बारी मर्दों की होती है ! मर्द यानी देवर जेठ बहुओं पर पानी डालते हैं और बहुए अपने बचाव में हंटर (देसी भाषा में कोलड़ा ) से मर्दों की पिटाई करती हैं ! ये कोलड़ा चुन्नी के लपेटे देने से बनता है चुन्नी सूती कपडे की होती है जिसको कई दिन पहले ही बनाकर पानी में भिगाया जाता है जो की सुखकर काफी कड़क हो जाता है ! लडकियां उस दिन पानी भरने का काम करती हैं ! देखिये कैसे …
गाँव के चौराहे पर बड़े बड़े ड्रम रख दिए जाते हैं जिनमे पानी भरने का काम गाँव की लडकियां करती हैं और उस पानी को लड़के गाँव की बहुओं पर डालते हैं और उसके बचाव में बहुए उन लडको को उस कोलड़ा मारने दौडती हैं , कई बार लड़के उस कोलड़ा की मार से बचने के लिए डंडे का इस्तेमाल करते हैं यानि डंडे को सामने कर कोलड़ा से बचने का प्रयत्न करते हैं फिर भी काफी मार खाते हैं यही एक दिन होता है जब औरत अपने पति पर भी हाथ उठा सकती है और वो रिवाज के अनुसार बुरा भी नहीं मानते हैं जेठ को भी लपेटे में ले सकती हैं 🙂 🙂 🙂
फिर शाम को लडू लाये जाते हैं जिसके लिए पहले से ही पैसे इक्कठे किये जाते हैं और फिर बहु और बेटियों में वो लडू बाँट दिए जाते हैं ! ये होती है हमारे हरियाने की ख़ास होली और दुल्हेंडी……
आप सभी को होली एवं दुल्हेंडी की बहुत सारी शुभकामनाएं ….. 🙂 🙂 🙂 🙂
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