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खुदा ऐ खुदा इतना बता दे जरा
तू रहता है कहाँ, क्या है तेरा पता
हमने ढूँढा बहुत यहाँ – वहाँ
पर तू मिला नहीं हमें यहाँ- वहाँ……….
इससे पूछा उससे पूछा सबने दिया
तेरा अलग- अलग पता
कोई कहे तू रहता है मंदिर में
कोई कहे तेरा घर है गुरुद्वारा
किसी ने कहा मिलेगा वो तुझे मस्जिद में
किसी ने दिया चर्च का पता ………
हम यहाँ भी गए, हम वहाँ भी गए
पर तू दिखा नहीं हमें किसी भी जगह
ऐ खुदा ऐ खुदा इतना बता दे जरा
तू रहता है कहाँ , क्या है तेरा पता …………
कोई कहता है तू दिलों में है रहता
कोई कहे तू तो रज – रज में है बसा
गर तू हर किसी के दिल में है बसा
फिर वो दिल क्यूँ इंसानियत से मरहूम हुआ
कैसे वो दिल किसी को दर्दे – आलम है देता
कैसे वो दिल हैवानियत का शिकार हुआ …………..
ऐ खुदा ऐ खुदा इतना बता दे जरा
तू है रहता कहाँ , क्या है तेरा पता
हर तरफ है नफरत का आलम
हर दिल में है खोट भरा
इंसान, इंसान का दुश्मन हुआ
गर तू उनके दिलों में है रहता
तो क्या तू खुद का है दुश्मन हुआ ………..
ऐ खुदा ऐ खुदा मेरी है बस इतनी सी सदा
तू जहाँ भी है , मिटा दे इस नफरत को
जला दे हर दिल में बस प्यार का दिया
न कोई तड़पे पेट की आग से
न कोई ठिठुरे सर्द भरी रातों में
न कोई किसी का दुश्मन हो
हर दिल में हो प्यार भरा …………
ऐ खुदा ऐ खुदा …………………..
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