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ना जाने क्यूँ वो समझता नहीं …………..

Hum bhi kuch kahen....
Hum bhi kuch kahen....
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वो कहता है एक बार आके तो मिल
देख जरा कितना बेचैन है मेरा दिल
पल पल , हर एक पल तुझे ही तो पुकारे
कहता है हम अधूरे हैं बिन तुम्हारे



बिना तेरे दिल में एक दर्द सा उठता है
कभी मीठा तो कभी जान लेवा होता है
लाख समझाया इसे पर ये नहीं सुनता है
अपनी ही धुन में बस तेरे लिए ही धडकता है ……….



तू जो एक बार आके मिल जाये
दिल को मेरे यूँ चैन आ जाये
न कुछ मांगूंगा फिर मैं दोबारा
कर ले यकीन मेरा मैं नहीं आवारा …………



हर रोज़ एक ही आस लगी रहती है
होठों पे एक अधूरी सी प्यास रहती है
जागती आँखों से खवाब हम देखते हैं
हर एक साँस में तुझे ही जिया करते हैं …….



कैसे आ जाऊं मैं मिलने कैसे मैं ये खता कर दूँ
कैसे निकलूँ इस सामाजिक चक्रव्यूह से
कैसे करूँ अनदेखा इन रस्मों और रिवाजों को
इन से अलग भला कौन जा पाया है
अलग जो गया तो कहाँ फिर जी पाया है ………………



न कोई समझेगा न कोई जानेगा तेरी इस पाक मोहबत्त को
तुझे भी नफरत के पत्थर मिलेंगे जैसे मिले थे मजनू को
दिल टूटेगा, अपनों का साथ भी छूटेगा चैन मिलेगा ना एक पल को
भूल जा इस प्यार और दिल की तड़प को जो नामंजूर है समाज को
एक प्यार के बदले क्या तू झेल पायेगा दुनिया की इस नफरत को……………

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