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जी लो फिर से अपना अनमोल बचपन

Hum bhi kuch kahen....
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आज के बचपन में और पहले के बचपन में काफी फर्क है ! आज के बच्चे सिर्फ अन्दर ही अन्दर खेलते हैं ! जब हम बच्चे थे तो हमें बड़ा इंतज़ार रहता था ki कब छुट्टियाँ होंगी और हमें ननिहाल जाने को मिलेगा ! फटाफट छुट्टियों का काम ख़तम करके ननिहाल जाते थे ! क्यूंकि तब बस वही एक टूरिस्ट प्लेस   होता था ! और साल में एक बार ही घुमने को मिलता था लेकिन आज कुछ ऐसा नहीं है ! कभी भी टूर प्लान हो जाता है और जहाँ एक बार चले गए वहां दुबारा जाना तो नामुमकिन होता है हर बार नया टूरिस्ट प्लेस …….


नानी के घर जाना फिर मस्ती करना ….. नानी भी सारी ख्वाहिशें पूरी करती थी चाहे खाने की हो या खेलने की …. पूरी आज़ादी होती थी …. सारा दिन खेलना नीम की छाँव में … दोपहरी को जब कुल्फी वाला आता तो दूर से ही उसकी टन टन सुन जाती और दोड़ते हुए नानी के पास जाते नानी जी कुल्फी वाला आया है हमें कुल्फी खानी है और नानी मुस्कुराती हुयी कुल्फी दिला देती और हम खाते ….

सुबह शाम के वक़्त खो -खो खेलते …. आइस पईस खेलते , पकड़म पकड़ाई खेलते , गट्टे खेलते , रस्सी कूदते , लंगड़ी खेलते(एक पैर पे जो खेलते हैं) …….
जब हम आइस पईस खेलते थे तो जब भी मेरी बारी आती थी ढूंढने की तो मैं बोलती कि मैं तो 100 तक गिनुंगी तुम सब आराम से छुप जाओ फिर मैं खोजूंगी और फिर जब सब छुपने को चले जाते तो मैं अपने घर आ जाती….. काफी देर छुपने के बाद सब खुद ही निकल निकल के आते कि कहाँ गयी अब तक आई नहीं और मैं घर में आराम से बैठी होती … सब बोलते आज के बाद तुम्हे नहीं खिलाएंगे लेकिन वो पल भर की कुट्टी होती थी अगले दिन फिर वही साथ खेलना होता था और सब भूल जाते थे की ये अपनी टर्न कभी पूरी नहीं करेगी और मुझे खिला लेते थे ……


जब मैं और मेरी सहेली सुमन हम खेलते थे एक पैर वाला खेल तो ज्यादातर मैं जीत जाती थी और मेरी सहेली हार जाती थी लेकिन कभी कभी वो जीत जाती तो मुझसे बर्दास्त नहीं होता था और मैं गुस्सा हो जाती थी फिर वो पूछती की तू इतना गुस्सा क्यों है तो मैं कहती की मैं हार गयी और तू जीत गयी मुझसे बर्दास्त नहीं हो रहा है तब वो बड़े प्यार से जवाब देती की तुम तो ज्यादातर जीत जाती हो और मैं अक्सर हार जाती हूँ पर मुझे ऐसे बुरा नहीं लगता .. खेल में जीत हार तो होती रहती है ……


हम जो खेल खेलते थे वो पूरी तरह से शारीरिक रूप से खेले जाते थे जिससे शरीर का व्यायाम भी हो जाता था … भूख भी अछी लगती थी ! लेकिन आजकल क्या है सब बच्चे अपने कमरे से नहीं निकलते हैं ! सारा टाइम टीवी पे कार्टून देखना , कंप्यूटर में गेम खेलना या फिर अपने कमरे में ही chess खेलना आदि गेम खेलते हैं जिसमे शारीरिक व्यायाम तो ना के बराबर रहता है बस मानसिक व्यायाम ही होता है जिसके कारण बच्चे शारीरिक रूप से कमजोर रह जाते हैं ! उम्र से पहले उन सब बातो को जान लेते हैं जो उनके लिए आव्यश्यक नहीं हैं . ये सब इन्टरनेट की देन है ….


हम भी कहाँ ध्यान देते हैं इन सब पर ! बच्चा खेल रहा है अपने कमरे में सारा दिन … वहीँ पे खाना खा रहा है ….. बाहर घुमने नहीं जा रहा बस हम आशातीत हैं की बच्चा बाहर नहीं जा रहा तो कुसंग्तियों से बचा रहेगा पर ऐसा नहीं होता है … बच्चा अन्दर ही अन्दर भी कुसंग्तियो का शिकार हो सकता है ….. माता पिता को ध्यान रखना चाहिए की बच्चा सारा दिन अपने कमरे में कर क्या रहा है उसे अपने साथ बैठने को कहना चाहिए , अपने साथ खाना खाने को कहना चाहिए , अपने साथ कभी कभी कोई गेम खेलने को कहना चाहिए …. हो सके तो उनको अपने बचपन के किस्से सुनाने चाहिए … उनको उन खेलो के बारे में बताना चाहिए जो हम खेलते थे उन खेलो के फायदे बताने चाहिए …. साथ में मिलकर खेलना भी चाहिए … अगर आपका बच्चा सारा दिन टीवी या कंप्यूटर पर बैठा रहेगा तो उसकी आँखों को कितना नुक्सान पहुँचता है … उम्र से पहले चश्मा लग जाता है !


हमने अपने बचपन में जो मस्ती की है वो सारी नहीं तो कुछ तो बच्चो को भी करनी चाहिए …. जो कहानिया सुनके हम बड़े हुए कभी कभी वो किस्से सुनाने चाहिए ! ऐसा करके हम ना सिर्फ अपने बच्चे का पूरण विकास कर पाएंगे बल्कि अपना बचपन भी फिर से जी पाएंगे ! बच्चे के दोस्त बन जायेंगे और बच्चा फिर किसी कुसंगति में नहीं पड़ेगा …


समय को तो नहीं बदल सकते पर कुछ बैटन का ध्यान रखके अपने बच्चो के साथ अपना बचपन जी लेंगे और अपने बच्चे के अछे दोस्त बनेंगे और अपने बच्चे को बहुत कुछ सिखा पाएंगे ….. आपका बच्चा आपके बचपन से परिचित होगा ….

करके देखिये अच्छा लगेगा ….
धन्यवाद…..

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