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एक बार बचपन में मैं माँ को बिना बताये किसी पड़ोस की लड़की के साथ चने भुनवाने भाड़ पर चली गयी ! भाड़ जो था वो बहुत दूर था और रास्ता भी जंगली था ! लेकिन मैं उस पड़ोस की लड़की के साथ चली गयी और भी बहुत सी लड़कियां गयी थी ! लेकिन भाड़ पर आस – पास के गाँव से भी आई हुयी थी चने भुनवाने को ! अतः भीड़ जयादा होने के कारन हमारा नंबर लेट आया और हमें पूरी दोपहरी बीत गयी ! तब तो सब लड़कियों में इस बात का ख्याल भी नहीं रहा की घर में बता के नहीं आई हूँ ! लेकिन जब घर की तरफ वापसी की तो याद आया की मैं तो सुबह से बिना बताये घर से गायब हूँ और आज तो मेरी खैर नहीं घर जाकर …………..
जब घर पहुंची तो डरी हुयी और सहमी हुयी थी ! उस समय मुझसे शरीफ कोई नहीं था और ऐसी शकल बनायीं हुयी थी की बस मुझसे दीन कोई नहीं …………… घर पहुँचते ही माँ बोली — आजा, कहाँ थी तू आज सुबह से ?? ………… तुम्हे ये पता नहीं कि घर में बता के जाते हैं ?????…………….. मैंने यहाँ तुम्हे कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा पर किसी को खबर नहीं कि तुम कहाँ थी ?????………. क्या एक बार भी तुम्हे ये ख्याल नहीं आया की जब मैं तुम्हे नहीं पाऊँगी तो मुझ पर क्या बीतेगी ?????………. मैं बस डरी हुयी सहमी हुयी खड़ी रही …………..
उस समय मुझे वो बाते समझ नहीं आई ! वो माँ का प्यार समझ नहीं आया… बस इतना समझ आया कि मैंने गलती कि थी और माँ ने मुझे झिरका था ! आज मैं भी एक माँ हूँ ! आज मुझे उनकी वो बातें अछे से समझ आ रही हैं कि माँ को कितनी चिंता हो गयी होगी क्यूंकि अब अगर कई बार स्कूल बस लेट हो जाती है तो मुझे बहुत चिंता हो जाती है ….. हर पल उलटे सीधे ख्याल आते हैं ! ……….. कभी किसी को पूछती हूँ कभी किसी को ……. अब मुझे माँ का मतलब भी पता है !….. और माँ का प्यार भी अछे से पता है ! ………… आज मेरी माँ भी जिन्दा नहीं है लेकिन उनका वो आखिरी स्पर्श मुझे आज भी याद है ……………….. उस अंतिम स्पर्श को मैं आज भी महसूस करती हूँ ……………. माँ जब तक होती है वो हर पल अपने बच्चे कि चिंता करती है …………… माँ हर रोज़ फोन करती थी चाहे कुछ काम हो या ना हो पर अब कोई ऐसा शक्श नहीं जो बिना किसी काम के फोन करे और पूछे कि क्या तुझे कोई तकलीफ तो नहीं है ? ……… आज भी जब घर पर जाते हैं तो लगता है कि माँ आयेगी और पूछेगी और डाटेंगी भी कि अबकी बार इतने दिनों बाद क्यूँ आई ?? ……… लेकिन सब अगले ही पल फुर्र हो जाता है जो एक बार इस जहाँ से चला गया वो कभी लौट के नहीं आया है ………….. बस उनकी यादें ही रह जाती है जो कभी कभी बस सताती हैं , रुलाती हैं …………………..
माँ शब्द में संसार समाया है ! माँ के आँचल में बच्चा खुद को हर तरह से महफूज़ समझता है ! माँ बच्चे कि पहली गुरु होती है ! इसीलिए माता को भी गुरु के सामान दर्ज़ा दिया जाता है ! माँ अछे बुरे में भेद करना सिखाती है ! माँ जीवन में आने वाली हर मुसीबतों से डट कर सामना करना सिखाती है ! ………………… आज मेरी माँ नहीं है लेकिन मैं अपनी ये रचना अपनी माँ को समर्पित करती हूँ ……….
माँ……….. ओ माँ…………. मेरी माँ ……………..
क्यूँ तू रुलाये……… क्यूँ तू सताए ………………..
कहाँ तू चली गयी …………….. माँ…. मेरी माँ …….
आके जरा देख ……… मेरे ये दिन रेन …………….
कितने हैं बेचैन्न्नन्न्न्न ………………
माँ ………. ओ माँ …………. मेरी माँ …………..
तेरे जैसा नहीं…….. यहाँ है कोई …………….
वो मेरा रूठना ………… वो तेरा मनाना …….
याद आये मुझे ………. करे है बेचैन्न्न्नन्न……..
माँ ….. ओ माँ ……………मेरी माँ………………
जहाँ भी मैं जाऊं ………… तुझी को पाऊँ ……
बिन तेरे डर मैं जाऊं …….. आँचल में तेरे छुप मैं जाऊं….
ओ माँ ….. मेरी माँ………प्यारी माँ………..
तू जो ना दिखे …… दिल करे शोर…. …..
ढूंढे तुझे ही हर और ……………..
तू जो मिल जाये…… रब मिल जाये …..
कुछ भी ना माँगू………. कुछ भी ना चाहूँ ………
तू ही ……. तू ही …… तू ही …. है सब और …..
ओ माँ …… मेरी माँ …….. प्यारी माँ……..
क्यूँ ना तू आये …….. बड़ा है रुलाये ……………
तेरी याद सताये…….दिन रैन ………….
ओ माँ ………….. मेरी माँ …… प्यारी माँ……
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