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जब एक लड़की का जन्म होता है तो हम सब इतने दुखी क्यूँ हो जाते हैं जैसे पता नहीं क्या हो गया हो . एक लड़की को बचपन से ही सिखाया जाता है की दुसरो की सेवा करो दुसरो की इज्ज़त करो दुसरो की चिंता करो सिर्फ और सिर्फ दुसरो के बारे में सोचो और वो अपनी पूरी जिन्दगी ऐसा ही करती है . जब वो अपने मायके में होती है तो उसके कितने सपनो को पूरा होने से रोक दिया जाता है कि नहीं तुम लड़की हो ऐसा मत करो जो करना हो अपने घर जाकर करना और जब वो ससुराल में जाती है तो भी उस से वाही उपेक्षा की जाती है कि अपने सपनो को भूल के अपने ससुराल के लोगो का ही ध्यान रखो बस. कोई नहीं पूछता कि वो खुद क्या चाहती है और उसको अपने सपनो को अपने ही दिल में दफ़न करना पड़ता है क्या ये सही है क्या उनको कभी भी अपने बारे में सोचने का हक होगा या नहीं. क्या वो कभी अपने लिए जी पायेगी या नहीं? क्या हर बार उसके सपने इसी तरह किसी कोने में दब जायेंगे ? क्या उसकी कोई पसंद होगी या नहीं ? क्या सिर्फ दुसरो के ही सपने पुरे करने में वो अपने सपनो को भूल जाएगी ?
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